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धूप में बैठे हैं बच्चे हाथ में छागल लिए | शाही शायरी
dhup mein baiThe hain bachche hath mein chhagal liye

ग़ज़ल

धूप में बैठे हैं बच्चे हाथ में छागल लिए

परवेज़ बज़्मी

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धूप में बैठे हैं बच्चे हाथ में छागल लिए
सो गईं शायद हवाएँ गोद में बादल लिए

आ रहा है चुप के तालाबों में पत्थर फेंकता
इक जुलूस-ए-कौदकाँ को साथ इक पागल लिए

इन अँधेरी बस्तियों में रख न दरवाज़ा खुला
कौन आता है यहाँ अपनाई की मशअ'ल लिए

ज़ात में गुम-सुम यूँही सड़कों पे दिन भर घूमना
और शब को सोचना पहलू में दिल बे-कल लिए

क्या अजब उस पर महक ही जाएँ दरमाँ के गुलाब
है तो इक शाख़-ए-नज़र उम्मीद की कोंपल लिए

आज तक बे-सम्तियों की रह-रवी ने क्या दिया
अब ज़रा दम ले भी लो 'बज़्मी' बहुत कुछ चल लिए