EN اردو
धूप की शिद्दत में नंगे पाँव नंगे सर निकल | शाही शायरी
dhup ki shiddat mein nange panw nange sar nikal

ग़ज़ल

धूप की शिद्दत में नंगे पाँव नंगे सर निकल

सुलतान रशक

;

धूप की शिद्दत में नंगे पाँव नंगे सर निकल
ऐ दिल-ए-सादा सवाद-ए-जब्र से बाहर निकल

कल का सूरज शाद-कामी की ख़बर दे या न दे
छोड़ अंदेशे हिसार-ए-ज़ात से बाहर निकल

मैं कई सदियों से गुम हूँ ख़्वाब के सकरात में
आफ़्ताब-ए-सुब्ह-ए-बेदारी मिरे सर पर निकल

साहिलों पर तेरे इस्तिक़बाल को आया है कौन
डूबने वाले उभर फिर सत्ह-ए-दरिया पर निकल

अहद दार-ओ-गीर है अपना तशख़्ख़ुस गुम न कर
सोच की सारी फ़सीलें तोड़ कर बाहर निकल

तीसरी दुनिया मुनव्वर हो मिरे अफ़्कार से
मेहर-ए-आज़ादी मिरे एहसास के अंदर निकल

अपने ख़द-ओ-ख़ाल देखूँ मैं भी ऐ सुल्तान-'रश्क'
मेरी आँखों से मगर ऐ ख़्वाब के मंज़र निकल