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ढूँड साया न शजर आगे भी | शाही शायरी
DhunD saya na shajar aage bhi

ग़ज़ल

ढूँड साया न शजर आगे भी

एहतराम इस्लाम

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ढूँड साया न शजर आगे भी
तय जो करना है सफ़र आगे भी

यूँही शमशीरों को ललकारेगा
रह गया धड़ पे जो सर आगे भी

दूर तक नाम नहीं साए का
हैं तो पीछे भी शजर आगे भी

क्यूँ सितमगर को सितमगर बोलो
ज़िंदा रहना है अगर आगे भी

रोकता कौन सफ़र किस दिल से
थी मुरादों की डगर आगे भी

दाएरे टूट न पाए वर्ना
जा तो सकती थी नज़र आगे भी

क्या ख़ुशामद से झटकना दामन
काम देगा ये हुनर आगे भी

सौ जन्म ले के जहाँ पहुँचा हूँ
मुझ को जाना है मगर आगे भी

शेर के रूप में देते रहना
'एहतिराम' अपनी ख़बर आगे भी