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धुँद है या धुआँ समझता हूँ | शाही शायरी
dhund hai ya dhuan samajhta hun

ग़ज़ल

धुँद है या धुआँ समझता हूँ

ऐन इरफ़ान

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धुँद है या धुआँ समझता हूँ
वुसअत-ए-आसमाँ समझता हूँ

इश्क़ की लज़्ज़तों से हूँ वाक़िफ़
दर्द-ओ-आह-ओ-फुग़ाँ समझता हूँ

ग़र्क़ होते जहाज़ देखे हैं
सैल-ए-वक़्त-ए-रवाँ समझता हूँ

गुफ़्तुगू करता हूँ दरख़्तों से
पंछियों की ज़बाँ समझता हूँ

वो कमाल-ए-शुऊ'र-ए-पाया है
अन-कही दास्ताँ समझता हूँ