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धुएँ में डूबे हैं फूल तारे चराग़ जुगनू चिनार कैसे | शाही शायरी
dhuen mein Dube hain phul tare charagh jugnu chinar kaise

ग़ज़ल

धुएँ में डूबे हैं फूल तारे चराग़ जुगनू चिनार कैसे

अतहर सलीमी

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धुएँ में डूबे हैं फूल तारे चराग़ जुगनू चिनार कैसे
नई रुतों के उड़न खटोलों पे आ रहे हैं सवार कैसे

मैं अपने आँगन की ज़र्द मिट्टी पे बैठा पहरों ये सोचता हूँ
दबीज़ शीशे की खिड़कियों में उगी थी शाख़-ए-अनार कैसे

चलो ये माना कि मेरे घर की घुटी घुटी सी फ़ज़ा थी लेकिन
तिरी मुंडेरों की डालियों पर बुझी दियों की क़तार कैसे

लिखा है जुग़राफ़ियों में सब कुछ मगर किसी ने न ये बताया
खिंची फ़लक की क़नात क्यूँकर बना ज़मीं का मज़ार कैसे

अधूरे ख़ाके में रंग भर लूँ गए दिनों का हिसाब कर लूँ
मगर जो तेरे बग़ैर गुज़रे करूँ वो लम्हे शुमार कैसे

उजाड़ फ़सलें हनूत साए मकान टीले सराब गलियाँ
उतर के पानी बना गया है ज़मीं पे नक़्श-ओ-निगार कैसे

जुनूँ की अंधी हवा ने 'अतहर' ख़मोश ग़ुर्फों को लब दिए हैं
सदा बना है गली गली में मिरे लहू का फ़िशार कैसे