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धुआँ सा कोई हवाओं में सरसराएगा कुछ | शाही शायरी
dhuan sa koi hawaon mein sarsaraega kuchh

ग़ज़ल

धुआँ सा कोई हवाओं में सरसराएगा कुछ

नदीम गोयाई

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धुआँ सा कोई हवाओं में सरसराएगा कुछ
फिर इस के ब'अद तुझे भी नज़र न आएगा कुछ

मैं जानता हूँ कहाँ तक है दस्तरस उस की
जो बीत जाए वही सब पे आज़माएगा कुछ

फ़सील-ए-संग की महदूदियत हलाकत है
उड़ा दे ख़ुद को हवा में तो सनसनाएगा कुछ

तू पानियों में ज़रा ऐसे हाथ पाँव न मार
निकलना दूर रहा और डूब जाएगा कुछ