धनक में सर थे तिरी शाल के चुराए हुए
मैं सुरमई था सर-ए-शाम गुनगुनाए हुए
समय की लहर तिरे बाज़ुओं में ले आई
हवा में बहर तिरी साँस में समाए हुए
तमानियत से उठाना मुहाल था मशअ'ल
मैं देखने लगा था उस को सर झुकाए हुए
सहर की गूँज से आवाज़ा-ए-जमाल हुआ
सो जागता रहा अतराफ़ को जगाए हुए
था बाग़ बाग़ शुआ'-ए-सफ़ेद से शब भर
गुलाब-ए-अबयज़-ए-रुख़ था झलक दिखाए हुए
ख़ुमार-ए-क़ुर्मुज़ी से आतिशीं था साग़र-ए-ख़्वाब
भरा था मुँह तिरे जामुन से बादा लाए हुए
अनार फूटते थे नींद के समुंदर में
वो देखता था मुझे फुलझड़ी लगाए हुए
दिखा रहा था मिरे पानियों से शहर-ए-विसाल
कोई चराग़ सा अंदर था झिलमिलाए हुए
हवा के झोंकों में जा कर उसे मैं पी आया
रहा वो देर तलक जाम-ए-मय बनाए हुए
ये तेरी मेरी जुदाई का नक़्श है बादल
बरस रहा है ब-यक-वक़्त वाँ भी छाए हुए
मुताबक़त से रहा तब्अ के अलाव को
कहीं जलाए हुए और कहीं बुझाए हुए
हिनाई हाथ से लग कर सजी कुछ और 'नवेद'
मिरी अँगूठी था अर्से से वो गुमाए हुए
ग़ज़ल
धनक में सर थे तिरी शाल के चुराए हुए
अफ़ज़ाल नवेद