धड़कनें मोहब्बत की दिल-नशीन ख़ामोशी
मर्हबा ऐ हंगामो आफ़रीन ख़ामोशी
कज-बयाँ ठिकानों से दूर इक ख़राबे में
घर बना के रहती है इक ज़हीन ख़ामोशी
शाम है ये वा'दे की इश्क़ के इरादे की
इक जवाँ सा सन्नाटा इक हसीन ख़ामोशी
सामने जो आ जाऊँ कैफ़ियत हया की फिर
टाँक देगी पलकों पर नाज़नीन ख़ामोशी
टूट कर जो बिखरूँगा देख लेगी दुनिया फिर
इक मकाँ मोहब्बत का और मकीन ख़ामोशी
गुफ़्तुगू तो तुझ से थी रू-ब-रू मैं ख़ुद से था
इक फ़लक सा हंगामा इक ज़मीन ख़ामोशी
बेवफ़ा ख़यालों से ज़ख़्म के हवालों से
क्या सवाल करती फिर वो हसीन ख़ामोशी
ग़ज़ल
धड़कनें मोहब्बत की दिल-नशीन ख़ामोशी
नाज़िर वहीद