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देना है तो निगाह को ऐसी रसाई दे | शाही शायरी
dena hai to nigah ko aisi rasai de

ग़ज़ल

देना है तो निगाह को ऐसी रसाई दे

कृष्ण बिहारी नूर

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देना है तो निगाह को ऐसी रसाई दे
मैं देखता हूँ आइना तो मुझे तू दिखाई दे

काश ऐसा ताल-मेल सुकूत-ओ-सदा में हो
उस को पुकारूँ मैं तो उसी को सुनाई दे

ऐ काश इस मक़ाम पे पहुँचा दे उस का प्यार
वो कामयाब होने पे मुझ को बधाई दे

मुजरिम है सोच सोच गुनहगार साँस साँस
कोई सफ़ाई दे तो कहाँ तक सफ़ाई दे

हर आने जाने वाले से बातें तिरी सुनूँ
ये भीक है बहुत मुझे दर की गदाई दे

या ये बता कि क्या है मिरा मक़्सद-ए-हयात
या ज़िंदगी की क़ैद से मुझ को रिहाई दे

कुछ एहतिराम अपनी अना का भी 'नूर' कर
यूँ बात बात पर न किसी की दहाई दे