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दें दीदा-ए-ख़ुश-ख़्वाब को ता'बीर कहाँ तक | शाही शायरी
den dida-e-KHush-KHwab ko tabir kahan tak

ग़ज़ल

दें दीदा-ए-ख़ुश-ख़्वाब को ता'बीर कहाँ तक

इरफ़ान वहीद

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दें दीदा-ए-ख़ुश-ख़्वाब को ता'बीर कहाँ तक
ऐ वक़्त तिरे जब्र की तौक़ीर कहाँ तक

कब तक कि कहो जज़्बा-ए-तामीर को तख़रीब
ऐ अहल-ए-सफ़ा झूट की तश्हीर कहाँ तक

अब दोस्त बनाने का हुनर भी ज़रा सीखें
की जा-ए-मह-ओ-नज्म की तस्ख़ीर कहाँ तक

ऐ शहर-ए-अना तेरे फ़रेबों के भरम में
आईना-मिसालों की हो तहक़ीर कहाँ तक

हर आन कोई मुझ में नया टूट रहा है
आख़िर कोई ख़ुद को करे ता'मीर कहाँ तक