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देखते देखते जब मौत सितारे की हुई | शाही शायरी
dekhte dekhte jab maut sitare ki hui

ग़ज़ल

देखते देखते जब मौत सितारे की हुई

खुर्शीद अकबर

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देखते देखते जब मौत सितारे की हुई
फिर कोई सुब्ह कहाँ ख़्वाब के मारे की हुई

वो मुहाजिर था मुहाजिर का मुहाजिर ही रहा
कब तिरे शहर में तदबीर गुज़ारे की हुई

उस के फ़रमान सभी दिल की सियाही ने लिखे
ऐसी तौहीन कहाँ नूर-नज़ारे की हुई

बुझते बुझते भी हुई आतिश-ए-जाँ तेज़ बहुत
और जो रस्म थी बाक़ी वो शरारे की हुई

ज़िंदगी भी किसी बाज़ार की औरत की तरह
न बियाहे की हुई और न कँवारे की हुई

क्या सुनाऊँ तुझे रूदाद-ए-सफ़र कैसी है
धूप आमद की हुई छाँव ख़सारे की हुई

यूँ तो वो चाँद भी बे-दाग़ नहीं था 'ख़ुर्शीद'
और मुझ से भी ख़ता एक इशारे की हुई