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देखो तो ज़रा ग़ज़ब ख़ुदा का | शाही शायरी
dekho to zara ghazab KHuda ka

ग़ज़ल

देखो तो ज़रा ग़ज़ब ख़ुदा का

परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़

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देखो तो ज़रा ग़ज़ब ख़ुदा का
ज़ालिम ने मुझी को पहले ताका

अल्लाह अता करे क़नाअ'त
नुस्ख़ा वाजिब-उल-अदा का

दिल देता हूँ मुफ़्त और कोई
पुरसाँ नहीं नक़्द-ए-नारवा का

वाँ मुझ पे जफ़ाएँ हो रही हैं
याँ विर्द है लफ़्ज़-ए-मर्हबा का

आना हो तो नज़्अ' में हूँ आओ
ये वक़्त नहीं है इल्तवा का

अब आए हो बन के तुम मसीहा
जब वक़्त गुज़र चुका दवा का

दामन में रवाँ हैं अश्क-ए-गुलगूँ
महज़र है ये ख़ून-ए-मुद्दआ का

लाया तो है उन को जज़्ब-ए-उल्फ़त
आया तो है ध्यान बे-नवा का

मैं हो ही चुका था ज़िंदा दरगोर
तुम आ गए शुक्र है ख़ुदा का

दुनिया से गुज़र चुके तो 'परवीं'
झगड़ा न रहा फ़ना बक़ा का