देखो तो जान तुम कूँ मनाते हैं कब सेती
बोलो ख़ुदा के वास्ते टुक लाल लब सेती
मुखड़ा तिरा है जान ये अचरज तिरा का चाँद
रोज़ाना और ख़ूब झलकता है शब सेती
ज़ुल्फ़ाँ कूँ कह कि दिल कूँ करें आप में सीं दूर
ये पेच-ओ-ताब उन कूँ है उस के तअब सेती
दस्त-ए-सलाम सर के उपर नक़्श-ए-पा है अब
हर-चंद ख़ाक-ए-राह हुआ हूँ अदब सेती
पानी में डूब आग में जल कर मरो पे एक
आशिक़ न हो पुकार के कहता हूँ सब सेती
हरजाइयो हर एक सीं लालच नहीं है ख़ूब
है भीक माँग खाना भला इस कसब सेती
बाँधा है बर्ग-ए-ताक का क्यूँ सर पे सेहरा
किया 'आबरू' का ब्याह है बिंत-उल-एनब सेती
ग़ज़ल
देखो तो जान तुम कूँ मनाते हैं कब सेती
आबरू शाह मुबारक