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देखने में तो लगते हैं इंसान से | शाही शायरी
dekhne mein to lagte hain insan se

ग़ज़ल

देखने में तो लगते हैं इंसान से

अतहर शकील

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देखने में तो लगते हैं इंसान से
बे-ख़बर हैं सब अपनी ही पहचान से

है तुझे याद करने की ख़्वाहिश बहुत
दिल जो ग़ाफ़िल कभी हो तिरे ध्यान से

दुश्मनी का कोई दाव-कारी नहीं
जीत लेते हैं दुश्मन को एहसान से

दिल में शफ़क़त हो चाहत हो इख़्लास हो
घर का मतलब नहीं साज़-ओ-सामान से

यूँ सर-ए-राह उन से तक़ाबुल हुआ
जैसे मिलता है अंजान अंजान से

घर से बाहर तो थे मुतमइन मुतमइन
घर में 'अतहर' मिले हैं परेशान से