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देखना जिन सूरतों का शक्ल थी आराम की | शाही शायरी
dekhna jin suraton ka shakl thi aaram ki

ग़ज़ल

देखना जिन सूरतों का शक्ल थी आराम की

मिर्ज़ा अली लुत्फ़

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देखना जिन सूरतों का शक्ल थी आराम की
उन से हैं मसदूद राहें नामा-ओ-पैग़ाम की

रुख़्सत ऐ अहल-ए-वतन अब हम हैं और आवारगी
हक़ रखे बुनियाद क़ाएम गर्दिश-ए-अय्याम की

याद ने उन तंग कूचों की फ़ज़ा सहरा की देख
हर क़दम पर जान मारी है दिल-ए-नाकाम की

गर्दिश-ए-चश्म-ए-बुताँ कि बस-कि साग़र-नोश है
गर्दिश-ए-गर्दूँ को हम कहते थे गर्दिश जाम की

जब से खींचा 'लुत्फ' रंज-ए-फ़ुर्क़त-ए-यार-ओ-दयार
अब हुई मालूम मेहनत गर्दिश-ए-अय्याम की