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देखिए क्या क्या सितम मौसम की मन-मानी के हैं | शाही शायरी
dekhiye kya kya sitam mausam ki man-mani ke hain

ग़ज़ल

देखिए क्या क्या सितम मौसम की मन-मानी के हैं

राजेन्द्र मनचंदा बानी

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देखिए क्या क्या सितम मौसम की मन-मानी के हैं
कैसे कैसे ख़ुश्क ख़ित्ते मुंतज़िर पानी के हैं

क्या तमाशा है कि हम से इक क़दम उठता नहीं
और जितने मरहले बाक़ी हैं आसानी के हैं

वो बहुत सफ़्फ़ाक सी धूमें मचा कर चल दिया
और अब झगड़े यहाँ उस शख़्स-ए-तूफ़ानी के हैं

इक अदम-तासीर लहजा है मिरी हर बात का
और जाने कितने पहलू मेरी वीरानी के हैं

उस की आदत है घिरे रहना धुएँ के जाल में
उस के सारे रोग इक अंधी परेशानी के हैं