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देखिए हालात के जोगी का कब टूटे शराप | शाही शायरी
dekhiye haalat ke jogi ka kab TuTe sharap

ग़ज़ल

देखिए हालात के जोगी का कब टूटे शराप

फ़सीह अकमल

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देखिए हालात के जोगी का कब टूटे शराप
शायद अब इस अहद में उस से न हो मेरा मिलाप

साहिब-ए-इमरोज़ अफ़्सुर्दा-मिज़ाज ओ मुश्तइल
गर्दिश-ए-हालात को पैमाना-ए-फ़र्दा से नाप

साया-ए-अफ़्क़ार में काँटे सही छाँव तो हो
ज़ेहन की आग़ोश से बाहर निकलना अब है पाप

दिल से ज़ौक़-ए-जुर्म-ए-मेहनत कह रहा है बार बार
आतिश-ए-एहसास के शोलों से भी कुछ देर ताप

आईने के सामने आते हुए डरते हैं क्यूँ
आईना-ए-साज़ों का उनवान-ए-तमन्ना जब हैं आप

अपनी साँसों को जला दे अपने दिल को तोड़ दे
वक़्त के मसरूफ़ साधू के लबों पर है ये जाप