देखिए हालात के जोगी का कब टूटे शराप
शायद अब इस अहद में उस से न हो मेरा मिलाप
साहिब-ए-इमरोज़ अफ़्सुर्दा-मिज़ाज ओ मुश्तइल
गर्दिश-ए-हालात को पैमाना-ए-फ़र्दा से नाप
साया-ए-अफ़्क़ार में काँटे सही छाँव तो हो
ज़ेहन की आग़ोश से बाहर निकलना अब है पाप
दिल से ज़ौक़-ए-जुर्म-ए-मेहनत कह रहा है बार बार
आतिश-ए-एहसास के शोलों से भी कुछ देर ताप
आईने के सामने आते हुए डरते हैं क्यूँ
आईना-ए-साज़ों का उनवान-ए-तमन्ना जब हैं आप
अपनी साँसों को जला दे अपने दिल को तोड़ दे
वक़्त के मसरूफ़ साधू के लबों पर है ये जाप
ग़ज़ल
देखिए हालात के जोगी का कब टूटे शराप
फ़सीह अकमल