देखी दिल दे के क़द्र-दानी
बस बंदा-नवाज़ मेहरबानी
होनी है बाज़-पुर्स-ए-आमाल
कहनी है बहुत बड़ी कहानी
शो'ले उठते हैं उस्तुख़्वाँ से
अल्लाह रे सोज़िश-निहानी
सूना है गोशा लहद में
हाँ हाँ वो रात भी है आनी
ओ वा'दा-ख़िलाफ़ सालहा-साल
आँखों ने की है पासबानी
आई पीरी पयाम-ए-रुख़्सत
बढ़ती जाती है ना-तवानी
मस्ताना-सरी 'नसीम' कब तक
आख़िर आख़िर है नौजवानी

ग़ज़ल
देखी दिल दे के क़द्र-दानी
नसीम देहलवी