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देखें तुझे न आवेंगे हम | शाही शायरी
dekhen tujhe na aawenge hum

ग़ज़ल

देखें तुझे न आवेंगे हम

हसरत अज़ीमाबादी

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देखें तुझे न आवेंगे हम
कहना नहीं कर दिखावेंगे हम

ये जौर कोई उठावे कब तक
उठ दर ही से तेरे जावेंगे हम

घर से मुझे मत निकाल सुन रख
जावेंगे तो फिर न आवेंगे हम

तू क़त-ए-नज़र तो हम से कर देख
नज़रों से तुझे गिरावेंगे हम

दो दिन कभू तिरे घर न आवें
घर अपने तुझे बुलावेंगे हम

घर उस का तो ढूँड कर के पाया
या-रब उसे घर भी पावेंगे हम

अग़माज़ करे है सब समझ कर
क्या हाल उसे सुनावेंगे हम

बोसे तो दिए हैं तीं तू हँस हँस
गाली तिरी क्यूँ न खावेंगे हम

इतनी भी पका न मेरी छाती
ऐ ग़ैर तुझे रिझावेंगे हम

दिल वो तुझे पूछे या न पूछे
पर याद तिरी दिलावेंगे हम

ताब उस की जफ़ाओं की किसी तरह
'हसरत' अब तो न लावेंगे हम