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देखें क़रीब से भी तो अच्छा दिखाई दे | शाही शायरी
dekhen qarib se bhi to achchha dikhai de

ग़ज़ल

देखें क़रीब से भी तो अच्छा दिखाई दे

ज़फ़र गोरखपुरी

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देखें क़रीब से भी तो अच्छा दिखाई दे
इक आदमी तो शहर में ऐसा दिखाई दे

अब भीक माँगने के तरीक़े बदल गए
लाज़िम नहीं कि हाथ में कासा दिखाई दे

नेज़े पे रख के और मिरा सर बुलंद कर
दुनिया को इक चराग़ तो जलता दिखाई दे

दिल में तिरे ख़याल की बनती है इक धनक
सूरज सा आईने से गुज़रता दिखाई दे

चल ज़िंदगी की जोत जगाए अजब नहीं
लाशों के दरमियाँ कोई रस्ता दिखाई दे

क्या कम है कि वजूद के सन्नाटे में 'ज़फ़र'
इक दर्द की सदा है कि ज़िंदा दिखाई दे