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देखा जो कुछ जहाँ में कोई दम ये सब नहीं | शाही शायरी
dekha jo kuchh jahan mein koi dam ye sab nahin

ग़ज़ल

देखा जो कुछ जहाँ में कोई दम ये सब नहीं

वलीउल्लाह मुहिब

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देखा जो कुछ जहाँ में कोई दम ये सब नहीं
टुक आँख मूँदते ही तुम और हम ये सब नहीं

थोड़ी सी ज़ीस्त है जो ख़ुशी से निभे तो ख़ैर
वर्ना निशात-ओ-ख़ुर्रमी-ओ-ग़म ये सब नहीं

बाग़-ओ-बहार-ओ-जोश गुल-ओ-ख़ंदा-ए-सुबूह
सौत-ए-हज़ार-ओ-गिर्या-ए-शबनम ये सब नहीं

दुनिया-ओ-दीन दीदा-ए-दिल सब्र और क़रार
तू ही अगर नहीं तो इक आलम ये सब नहीं

किस काम के हैं बे-असरी से अगरचे हैं
आह-ओ-फ़ुग़ान-ओ-दीदा-ए-पुर-नम ये सब नहीं

बे-इश्क़ जितनी ख़ल्क़ है इंसाँ की शक्ल में
नज़रों में अहल-ए-दीद के आदम ये सब नहीं

ज़ख़्म-ए-निहान-ए-हिज्र को बे-वस्ल ऐ 'मुहिब'
हो सूद-मंद बख़िया-ओ-मरहम ये सब नहीं