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देखा है कहीं रंग-ए-सहर वक़्त से पहले | शाही शायरी
dekha hai kahin rang-e-sahar waqt se pahle

ग़ज़ल

देखा है कहीं रंग-ए-सहर वक़्त से पहले

तुर्फ़ा क़ुरैशी

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देखा है कहीं रंग-ए-सहर वक़्त से पहले
शबनम न उगा दीदा-ए-तर वक़्त से पहले

ऐ ताएर-ए-शब रू-कश-ए-गुल-बांग-ए-सहर हो
ख़ुशबू नहीं देता गुल-ए-तर वक़्त से पहले

वो हुस्न-ए-सरापा अभी बे-पर्दा कहाँ है
क्यूँ उठ्ठे मोहब्बत की नज़र वक़्त से पहले

मौजों के झकोले हों कि तूफ़ाँ के थपेड़े
क़तरा कहीं बनता है गुहर वक़्त से पहले

ऐ ख़ाना-बर-अंदाज़-ए-चमन थोड़ा तअम्मुल
मिलती नहीं शाख़-ए-गुल-ए-तर वक़्त से पहले

तकमील-ए-मोहब्बत के लिए चाहिए इक उम्र
होता नहीं मैदान ये सर वक़्त से पहले

बीनाई-ए-नाक़िस का करिश्मा है ये 'तुरफ़ा'
ऐबों में नज़र आया हुनर वक़्त से पहले