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देख तेरा जमाल कुछ का कुछ | शाही शायरी
dekh tera jamal kuchh ka kuchh

ग़ज़ल

देख तेरा जमाल कुछ का कुछ

मिर्ज़ा जवाँ बख़्त जहाँदार

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देख तेरा जमाल कुछ का कुछ
दिल में आया ख़याल कुछ का कुछ

आज लगता है मेरी आँखों में
वो मिरा नौनिहाल कुछ का कुछ

देख उस मनहरन की आँखों को
हो गया उस का हाल कुछ का कुछ

ख़त पे उस के तो थी कुछ और ही बहार
है फ़रीबिंदा ख़ाल कुछ का कुछ

है तरक़्क़ी में उस ख़ुश-अबरू का
हुस्न मिस्ल-ए-हिलाल कुछ का कुछ

हाल दिखलाते हैं ज़माने का
गर्दिश-ए-माह-ओ-साल कुछ का कुछ

ऐ 'जहाँदार' मश्क़-ए-शेर में अब
तू ने पाया कमाल कुछ का कुछ