देख मोहन तिरी कमर की तरफ़
फिर गया मानी अपने घर की तरफ़
जिन ने देखे तिरे लब-ए-शीरीं
नज़र उस की नहीं शकर की तरफ़
है मुहाल उन का दाम में आना
दिल है माइल बुताँ का ज़र की तरफ़
तेरे रुख़्सार की सफ़ाई देख
चश्म दाना की नईं गुहर की तरफ़
हैं ख़ुशामद-तलब सब अहल-ए-दुवल
ग़ौर करते नईं हुनर की तरफ़
माह-रू ने सफ़र किया है जिधर
दिल मिरा है उसी नगर की तरफ़
हश्र में पाक-बाज़ है 'नाजी'
बद-अमल जाएँगे सक़र की तरफ़
ग़ज़ल
देख मोहन तिरी कमर की तरफ़
नाजी शाकिर