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देख लो इक नज़र में कुछ भी नहीं | शाही शायरी
dekh lo ek nazar mein kuchh bhi nahin

ग़ज़ल

देख लो इक नज़र में कुछ भी नहीं

शरफ़ मुजद्दिदी

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देख लो इक नज़र में कुछ भी नहीं
सच कहा है बशर में कुछ भी नहीं

शैख़ कुछ अपने-आप को समझें
मय-कशों की नज़र में कुछ भी नहीं

कुछ न होने पे हो तुम्हीं सब कुछ
तुम नहीं हो तो घर में कुछ भी नहीं

क्या समझता है आप को ऐ दिल
तू किसी की नज़र में कुछ भी नहीं

ऐ 'शरफ़' सच है मिस्रा-ए-'मिसबाह'
हम तो अपनी नज़र में कुछ भी नहीं