देख लो इक नज़र में कुछ भी नहीं
सच कहा है बशर में कुछ भी नहीं
शैख़ कुछ अपने-आप को समझें
मय-कशों की नज़र में कुछ भी नहीं
कुछ न होने पे हो तुम्हीं सब कुछ
तुम नहीं हो तो घर में कुछ भी नहीं
क्या समझता है आप को ऐ दिल
तू किसी की नज़र में कुछ भी नहीं
ऐ 'शरफ़' सच है मिस्रा-ए-'मिसबाह'
हम तो अपनी नज़र में कुछ भी नहीं
ग़ज़ल
देख लो इक नज़र में कुछ भी नहीं
शरफ़ मुजद्दिदी