देख लटका सजन तेरी लट का
उस की हर मू-ब-मू में दिल अटका
आब-ए-तेग़-ए-निगह के प्यासे कूँ
कम-निगाही का मार मत फटका
ग़म्ज़ा तेरा अजब सिपाही है
जिस की दहशत सूँ बुल-हवस सटका
इश्क़ का ज़हर उस सूँ क्यूँ तेरे
नाग तुझ ज़ुल्फ़ का जिसे चटका
मुस्तइद हैं तेरे यू मर्दुम-ए-चश्म
मुझ को अबरू का मारने सट का
होश 'दाऊद' का हुआ लट-पट
देख कर तेरी नाज़ का लटका
ग़ज़ल
देख लटका सजन तेरी लट का
दाऊद औरंगाबादी