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देख क्या तेरी जुदाई में है हालत मेरी | शाही शायरी
dekh kya teri judai mein hai haalat meri

ग़ज़ल

देख क्या तेरी जुदाई में है हालत मेरी

शबाब

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देख क्या तेरी जुदाई में है हालत मेरी
कोई पहचान नहीं सकता है सूरत मेरी

मैं तिरे हुस्न का ख़ल्वत में तमाशाई हूँ
आईना सीख न जाए कहीं हैरत मेरी

आप ने क़त्ल किया ख़ैर गिला मुझ को नहीं
अपने कूचे में तो बनवाइए तुर्बत मेरी

ख़त्त-ए-पेशानी में सफ़्फ़ाक अज़ल के दिन से
तेरी तलवार से लिक्खी है शहादत मेरी

दे के इक बोसा अजब नाज़ से दिलबर ने कहा
ऐ 'शबाब' आज ये तुझ पर है इनायत मेरी