देख कर उठता हुआ शौक़ का सर या'नी तू
काट डालेगा मिरा दस्त-ए-हुनर या'नी तो
मेरी तक़दीर में लिक्खेगा अंधेरों का सुकूत
रौंद डालेगा मिरी ताज़ा सहर या'नी तो
बस यही है मिरे दामान-ए-सफ़र में अब तो
मेरी मंज़िल है मिरी राहगुज़र या'नी तू
जब भी आएगा सवा नेज़े पे ख़ुर्शीद-ए-ग़ज़ब
फूलने-फलने नहीं देगा शजर या'नी तू
मुझ को मा'लूम है ऐ दोस्त उठा लेता है
मेरे हिस्से के सभी बर्ग-ओ-समर या'नी तू
तेरे तेवर ये बताते हैं ऐ जाने वाले
लौट के अब न कभी आएगा घर या'नी तू
ये गुज़ारिश है मिरी तुझ से गुज़ारिश मेरी
मेरी नस नस में उतर तू ही उतर या'नी तू
ख़ुश्बू-ए-गुल की तरह रंग-ए-शफ़क़ की सूरत
दिल के आँगन में बिखर और बिखर या'नी तू
निखरा निखरा सा है उम्मीद का मौसम यूँ भी
शाख़-ए-उम्मीद पे कुछ और सँवर और सँवर या'नी तू
राह-ए-उल्फ़त में मुझे तेरी क़सम जान-ए-'नबील'
है मिरे पेश-ए-नज़र पेश-ए-नज़र या'नी तू
ग़ज़ल
देख कर उठता हुआ शौक़ का सर या'नी तू
नबील अहमद नबील