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देख कर उस को मुझे धचका लगा | शाही शायरी
dekh kar usko mujhe dhachka laga

ग़ज़ल

देख कर उस को मुझे धचका लगा

शफ़ीक़ सलीमी

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देख कर उस को मुझे धचका लगा
मिस्ल-ए-दरिया था मगर प्यासा लगा

नफ़रतों की धुँद में लिपटा लगा
आइने का नक़्श भी झूटा लगा

सख़्त-जाँ थे बच गए इस बार भी
ज़ख़्म अब के भी हमें गहरा लगा

पूरे क़द से ईस्तादा जब हुए
शहर का हर शख़्स फिर बौना लगा

किस की छाँव साएबाँ करते 'शफ़ीक़'
हर शजर पर ख़ौफ़ का साया लगा