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देख कर मक़्तल में ख़ंजर उस सितम-ईजाद का | शाही शायरी
dekh kar maqtal mein KHanjar us sitam-ijad ka

ग़ज़ल

देख कर मक़्तल में ख़ंजर उस सितम-ईजाद का

आशिक़ अकबराबादी

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देख कर मक़्तल में ख़ंजर उस सितम-ईजाद का
मौत बोली आज मौक़ा है मुबारकबाद का

ये तग़ाफ़ुल वजह-ए-तस्कीं है दिल-ए-नाशाद का
भूल जाना भी तुम्हारा इक सबब है याद का

पैकर-ए-अंदाज़ किस का खिंचते खिंचते रह गया
आज क्यूँ उतरा है चेहरा मानी-ओ-बहज़ाद का

हम को कुछ दोज़ख़ से मतलब है न जन्नत से ग़रज़
है बजा लाना मुक़द्दम आप के इरशाद का

किस के जज़्ब-ए-हुस्न ने तासीर सारी छीन ली
आज क्यूँ ख़ाली है गोशा दामन-ए-फ़रियाद का

या-इलाही इस दिल-ए-बेताब की ता'मीर में
किस ने पत्थर रख दिया था इश्क़ की बुनियाद का

मिन्नतों पर मेरी कहते हैं वो किस अंदाज़ से
क्यूँकि हो रिश्ता परी-ज़ादों से आदम-ज़ाद का

दाग़-ए-दिल हैं या कोई गुल-दस्ता-ए-आलम-फ़रेब
है दिल-ए-पुर-दाग़ या गुलशन कोई शद्दाद का

उड़ गए हाथों के तोते जब से बुलबुल ने सुना
ख़ूब तूती बोलता है इन दिनों सय्याद का

उन के कूचे में मिला ये फल मोहब्बत का मुझे
नाम 'आशिक़' है लक़ब है ख़ानमाँ-बर्बाद का