देख कर हम को असीर-ए-आरज़ू
और भी वो हो गए बेगाना-ख़ू
फाड़ डाला दस्त-ए-वहशत ने जिसे
फिर करें क्या इस गरेबाँ का रफ़ू
फिर सजाओ महफ़िल-ए-दार-ओ-रसन
मुज़्तरिब है फिर ज़बान-ए-गुफ़्तुगू
गर ज़ियादा से ज़ियादा हों गुनह
कम नहीं है आयत-ए-ला-तक़नतू
मुझ को डर लगता है अपने शहर में
हैं बहुत ऊँचे यहाँ के काख़-ओ-कू
जब भी रुत आती है पतझड़ की यहाँ
चूस लेती है बहारों का लहू
रह के 'नजमी' ने पस-ए-पर्दा यहाँ
कर दिया है सब को महव-ए-जुस्तुजू
ग़ज़ल
देख कर हम को असीर-ए-आरज़ू
अमजद नजमी