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देख कर दिल को पेच-ओ-ताब के बीच | शाही शायरी
dekh kar dil ko pech-o-tab ke bich

ग़ज़ल

देख कर दिल को पेच-ओ-ताब के बीच

मीर असर

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देख कर दिल को पेच-ओ-ताब के बीच
आ पड़ा मुफ़्त मैं अज़ाब के बीच

कौन रहता है तेरे ग़म के सिवा
इस दिल-ए-ख़ानुमाँ-ख़राब के बीच

तेरे आतिश-ज़दों ने मिस्ल-शरार
उम्र काटी है इज़्तिराब के बीच

क्या कहूँ तुझ से अब के मैं तुझ को
किस तरह देखता हूँ ख़्वाब के बीच

शम्अ' फ़ानूस में न जब के छुपे
कब छुपे है ये मुँह नक़ाब के बीच

टुक तबस्सुम ने की शकर-रेज़ी
बारे अब तल्ख़ी-ए-इताब के बीच

क्या कहे वो कि सब हुवैदा है
शान तेरी तिरी किताब के बीच

है ग़ुलामी 'असर' को हज़रत-ए-'दर्द'
ब-दिल-ओ-जाँ तिरी जनाब के बीच