देख जुर्म-ओ-सज़ा की बात न कर
मय-कदे में ख़ुदा की बात न कर
मैं तो बे-मेहरियों का आदी हूँ
मुझ से मेहर-ओ-वफ़ा की बात न कर
शौक़-ए-बे-मुद्दआ' का मारा हूँ
शौक़-ए-बे-मुद्दआ' की बात न कर
वो तो मुद्दत हुई कि टूट गया
मेरे दस्त-ए-दुआ की बात न कर
जो नहीं इख़्तियार में मेरे
उस बुत बे-वफ़ा की बात न कर
इश्क़ की इंतिहा को देख ज़रा
इश्क़ की इब्तिदा की बात न कर
क्या मिला फ़िक्र की रसाई से
मेरी फ़िक्र-ए-रसा की बात न कर
इस की तक़दीर में ख़राबी थी
इस दिल-ए-मुब्तला की बात न कर
जो भी होना था हो गया 'शो'ला'
करम-ए-नाख़ुदा की बात न कर
ग़ज़ल
देख जुर्म-ओ-सज़ा की बात न कर
द्वारका दास शोला