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देख दरवाज़े से मुझ को वो परी-रू हट गई | शाही शायरी
dekh darwaze se mujhko wo pari-ru haT gai

ग़ज़ल

देख दरवाज़े से मुझ को वो परी-रू हट गई

मीर हसन

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देख दरवाज़े से मुझ को वो परी-रू हट गई
देखते ही उस के मेरी जान बस चट-पट गई

तुम उधर धोते रहे मुँह हम इधर रोते रहे
रोते-धोते दो घड़ी बारे मज़े से कट गई

गर्द-ए-कुल्फ़त बस-कि छाई दिल से ता आँखों तलक
नहर थी जारी जो आँखों की मिरे सो पट गई

जी अदा ने ज़ुल्फ़ ने दिल होश ग़मज़ों ने लिया
जिंस-ए-हस्ती अपनी सब ग़ारत में आ कर बट गई

पर्दे ही पर्दे में दिल को ख़ाक कर डाला मिरे
इस अदा से वो परी मुँह पर लिए घुँघट गई

ज़ुल्फ़ गर छिदरी हुई तेरे तो मत खा पेच-ओ-ताब
क्या हुआ अज़-बस उठाए बोझ दिल के लुट गई

कल जो मेरा ख़ुश-निगह गुज़रा चमन से ऐ 'हसन'
मूँद ली बादाम ने आँख और नर्गिस कट गई