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देख अक़्द-ए-सुरय्या हमें अंगूर की सूझी | शाही शायरी
dekh aqd-e-surayya hamein angur ki sujhi

ग़ज़ल

देख अक़्द-ए-सुरय्या हमें अंगूर की सूझी

नज़ीर अकबराबादी

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देख अक़्द-ए-सुरय्या हमें अंगूर की सूझी
क्यूँ बादा-कशाँ हम को भी क्या दूर की सूझी

ग़श खा के गिरा पहले ही शो'ले की झलक से
मूसा को भला कहिए तो क्या तूर की सूझी

हम ने तो उसे देख ये जाना कि परी है
परियों ने जो देखा तो उन्हें हूर की सूझी

देखा जो नहाने में वो गोरा बदन उस का
बिल्लोर की चौकी पे झलक नूर की सूझी

सर पाँव से जब फँस गए उस ज़ुल्फ़-ए-सियह में
जब हम को स्याही-ए-शब-ए-दीजूर की सूझी

जन्नत के लिए शैख़ जो करता है इबादत
की ग़ौर जो ख़ातिर में तो मज़दूर की सूझी

मस्नूअ में सानेअ' नज़र आवे तो 'नज़ीर' आह
नज़दीक की फिर क्या है जहाँ दूर की सूझी