देख अपने क़रार करने को
और मिरे इंतिज़ार करने को
तुम्हें देखे से क्या तसल्ली हो
जी तो होता है प्यार करने को
मेरी तदबीर इक नहीं करता
हैं नसीहत हज़ार करने को
वो वो सदमे सहे शब-ए-ग़म में
चाहिए दिन शुमार करने को
वो गर आएँ तो पास क्या है और
एक जाँ है निसार करने को
झूटे वादे किया न कीजे आप
मुफ़्त उम्मीद-वार करने को
आप हैं रूठने ही को और हम
मिन्नतें बार बार करने को
अपनी अय्यारियों को देखें आप
और मिरे ए'तिबार करने को
दिल भी तेरा सा चाहिए है 'निज़ाम'
इश्क़ के इख़्तियार करने को
ग़ज़ल
देख अपने क़रार करने को
निज़ाम रामपुरी