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दे गया आख़िरी सदा कोई | शाही शायरी
de gaya aaKHiri sada koi

ग़ज़ल

दे गया आख़िरी सदा कोई

आबिद आलमी

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दे गया आख़िरी सदा कोई
फ़ासलों पर बिखर गया कोई

रात का दर्द बाँटने के लिए
रात-भर जागता रहा कोई

एक साए की तरह बे-आवाज़
मेरे दर पर खड़ा रहा कोई

आसमाँ से परे भी कुछ होगा
उम्र-भर सोचता रहा कोई

सूख जाने दे टूट जाने दे
ले उड़ेगी मुझे हवा कोई

या बना दे पहाड़ का पत्थर
या मुझे रास्ता दिखा कोई

तोड़ कर जिस्म के दर-ओ-दीवार
आइने में उतर गया कोई