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हुजूम-ए-ग़म है क़ल्ब ग़म-ज़दा है | शाही शायरी
hujum-e-gham hai qalb gham-zada hai

ग़ज़ल

हुजूम-ए-ग़म है क़ल्ब ग़म-ज़दा है

सबा अकबराबादी

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हुजूम-ए-ग़म है क़ल्ब ग़म-ज़दा है
मिरी महफ़िल मिरा ख़लवत-कदा है

अज़ल से आज तक कोई न समझा
हयात-ए-मुख़्तसर क्या शो'बदा है

बहकने दे ज़रा रिंदों को साक़ी
यही हंगामा जान-ए-मय-कदा है

कहाँ देखोगे तुम अपनी तजल्ली
जो आईना है वो हैरत-ज़दा है

नज़र क्या जाम-ओ-मीना पर उठाऊँ
निगाह-ए-दोस्त पूरा मय-कदा है

इधर भी रुख़ कर ऐ बारान-ए-रहमत
हमारा आशियाँ आतिश-ज़दा है

मिरे पीने पे पाबंदी है जब से
'सबा' उजड़ा हुआ सा मय-कदा है