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दयार-ए-फ़िक्र-ओ-हुनर को निखारने वाला | शाही शायरी
dayar-e-fikr-o-hunar ko nikhaarne wala

ग़ज़ल

दयार-ए-फ़िक्र-ओ-हुनर को निखारने वाला

फ़र्रुख़ ज़ोहरा गिलानी

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दयार-ए-फ़िक्र-ओ-हुनर को निखारने वाला
कहाँ गया मिरी दुनिया सँवारने वाला

फिर उस के बाद कभी लौट कर नहीं आया
वफ़ा के रंग नज़र में उतारने वाला

मुझे यक़ीं है कि ख़ुशबू का हम-सफ़र होगा
गुलाब हुस्न-ए-मोहब्बत के वारने वाला

हमारी दीद को रक़्स-ए-शरार छोड़ गया
जुदाइयों की शब-ए-ग़म गुज़ारने वाला

अभी तलक है सदा पानियों पे ठहरी हुई
अगरचे डूब चुका है पुकारने वाला