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दौरा है जब से बज़्म में तेरी शराब का | शाही शायरी
daura hai jab se bazm mein teri sharab ka

ग़ज़ल

दौरा है जब से बज़्म में तेरी शराब का

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

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दौरा है जब से बज़्म में तेरी शराब का
बाज़ार गर्म है मिरे दिल के कबाब का

ख़ूबाँ को किस तरह से लगा ले है बात में
बंदा हूँ अपनी तब-ए-ज़राफ़त-मआब का

जो नामा-बर गया न फिरा एक अब तलक
ऐ दिल तू इंतिज़ार अबस है जवाब का

हसरत ये है कि रात को आए वो माह-रू
दौलत से उस की दीद करूँ माहताब का

अल्ताफ़ में भी उस के अज़िय्यत है सौ तरह
लाऊँ कहाँ से हौसला उस के इताब का

रुख़्सार के अरक़ का तिरे भाव देख कर
पानी के मोल निर्ख़ हुआ है गुलाब का

'हातिम' यही हमेशा ज़माने की चाल है
शिकवा बजा नहीं है तुझे इंक़लाब का