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दौर-ए-चर्ख़-ए-कबूद जारी है | शाही शायरी
daur-e-charKH-e-kabud jari hai

ग़ज़ल

दौर-ए-चर्ख़-ए-कबूद जारी है

साहिर होशियारपुरी

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दौर-ए-चर्ख़-ए-कबूद जारी है
जिस्म-ओ-जाँ पर जुमूद तारी है

गोया इंसाँ नहीं हयूला हूँ
मेरी रग रग में दूद सारी है

मौत हम-साए में हुई है तो क्या
बज़्म-ए-रक़्स-ओ-सुरूर जारी है

दोस्तों से वो क्या करेंगे सुलूक
जिन पर अपना वजूद भारी है

है तसव्वुर में इक रुख़-ए-रौशन
और लब पर दरूद जारी है

उम्र भर खुल सकी न दिल की गिरह
ख़ूब शग़्ल-ए-कुशूद-कारी है

भर न पाएगा ज़ख़्म-ए-दिल 'साहिर'
ज़र्ब-ए-हर्फ़-ए-हुसूद कारी है