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दौड़ता रहता हूँ ना-मालूम सम्तों की तरफ़ | शाही शायरी
dauDta rahta hun na-malum samton ki taraf

ग़ज़ल

दौड़ता रहता हूँ ना-मालूम सम्तों की तरफ़

जमाल ओवैसी

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दौड़ता रहता हूँ ना-मालूम सम्तों की तरफ़
देखता हरगिज़ नहीं पैरों के छालों की तरफ़

बस्तियों के लोग सच सुन कर बहुत बरहम हुए
अब मिरा उगला निशाना ख़ानक़ाहों की तरफ़

अब मिरे दामन से उलझी हैं कटीली झाड़ियाँ
क्यूँ निकल आया था घर से ख़ार-ज़ारों की तरफ़

सख़्त तन्हाई की वहशत से मुझे मरना नहीं
घर से घबरा कर निकल पड़ता हूँ राहों की तरफ़

देखना ख़ुर्शीद-ए-आलम-ताब का आलम कि फिर
ढूँडने निकला है ख़ुद को माह-पारों की तरफ़