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दस्तियाब उस को हुआ जब से है गुल-दस्ता-ए-दाग़ | शाही शायरी
dastiyab usko hua jab se hai gul-dasta-e-dagh

ग़ज़ल

दस्तियाब उस को हुआ जब से है गुल-दस्ता-ए-दाग़

शाह आसिम

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दस्तियाब उस को हुआ जब से है गुल-दस्ता-ए-दाग़
बुलबुल-ए-दिल का नहीं मिलता है ज़िन्हार दिमाग़

हल्क़ा-ए-ज़ुल्फ़ से उस की जो अयाँ हैं आरिज़
शब-ए-तारीक में गोया कि फ़रोज़ाँ है चराग़

गर फ़रोग़-ए-रुख़-ए-जानाना मदद-फ़रमा हो
ग़म-ए-कौनैन से हो जावे वहीं दिल को फ़राग़

फ़ज़्ल-ए-ईज़द से मुबारक रहे ऐ वाइज़-ए-शहर
कूचा-ए-यार हमें और तुझे फ़िरदौस का बाग़

मस्त-ए-इश्क़-ए-शह-ए-ख़ादिम हूँ मैं 'आसिम' यकसर
जिस ने बख़्शा है मुझे बादा-ए-इरफ़ाँ का अयाग़