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दस्त-ए-दामन दुआ रहे न रहे | शाही शायरी
dast-e-daman dua rahe na rahe

ग़ज़ल

दस्त-ए-दामन दुआ रहे न रहे

मरयम नाज़

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दस्त-ए-दामन दुआ रहे न रहे
हम चले अब वफ़ा रहे न रहे

मैं फ़ना की डगर पे हूँ यारो
अब किसी की सज़ा रहे न रहे

आइने तुम तो मेरे साथ रहो
मुझ में चाहे अदा रहे न रहे

जलना क़िस्मत में है तो जलना है
छत पे कोई घटा रहे न रहे

पाँव नंगे हैं हर तमन्ना के
सर पे अब के रिदा रहे न रहे

हो गई जो ख़ता तो अब के बरस
मुझ में कोई ख़ता रहे न रहे

जल गई बाग़ की उमीदें भी
अब गुलों में फ़ज़ा रहे न रहे

मेरे ज़ख़्मों के दस्त-ए-दामन में
दर्द की अब दवा रहे न रहे

बुझ गए दीप सब वफ़ाओं के
सहन में अब हवा रहे न रहे

फ़र्क़ पड़ता है क्या भला मुझ को
उस के दिल में दग़ा रहे न रहे

अलमिये ख़ूब हम ने झेले हैं
डर नहीं अलमिया रहे न रहे

गिर्या-ओ-ग़म के आईने में हैं
अक्स में अब अज़ा रहे न रहे

मेरे पहलू से आग है लिपटी
सर पे बाद-ए-सबा रहे न रहे

लब खुले हैं तो कुछ सुनो पल-भर
क्यूँ के फिर ये गिला रहे न रहे

अब न लौटेंगे फिर कभी 'मरियम'
मेरे पीछे सदा रहे न रहे