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दश्त से मैं जो अपने घर आया | शाही शायरी
dasht se main jo apne ghar aaya

ग़ज़ल

दश्त से मैं जो अपने घर आया

मिद्हत-उल-अख़्तर

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दश्त से मैं जो अपने घर आया
मेरे दिल में ख़ुदा उतर आया

जिस की क़ीमत न दे सका कोई
मेरे हिस्से में वो गुहर आया

सारी दुनिया है राह पर मेरी
जब से मैं तेरी राह पर आया

कितने पत्थर हैं सामने लेकिन
बुत-गरी का किसे हुनर आया

किस ने दुनिया को ज़िंदगी दे दी
मौत का दिल भी आज भर आया

फिर दर-ओ-बाम हो गए रंगीं
फिर लहू मेरा मौज पर आया