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दश्त में पहले वो समुंदर चमकाता है | शाही शायरी
dasht mein pahle wo samundar chamkata hai

ग़ज़ल

दश्त में पहले वो समुंदर चमकाता है

कृष्ण कुमार तूर

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दश्त में पहले वो समुंदर चमकाता है
तब फिर सीने में ख़ंजर चमकाता है

भीड़ से वो करता है मुझे कुछ ऐसे जुदा
बर नेज़े पर मेरा सर चमकाता है

भेद खोलता है वो यूँ अपने होने का
हर आने वाले का घर चमकाता है

देखूँ वो कब करता है ज़ंग-ए-अना काफ़ूर
देखूँ वो कब मेरा अंदर चमकाता है

वर्ना क्या मिट्टी क्या मिट्टी की काया
कुछ तो है जो वो ज़मीं पर चमकाता है

तारे सूरज फूल समुंदर चिड़िया में
वो कैसे कैसे मंज़र चमकाता है

वो कब रहने देता है मुझ को अकेला 'तूर'
आँख इक नीलम सी शब भर चमकाता है