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दश्त में गुलशन में हर जा की है तेरी जुस्तुजू | शाही शायरी
dasht mein gulshan mein har ja ki hai teri justuju

ग़ज़ल

दश्त में गुलशन में हर जा की है तेरी जुस्तुजू

जाफ़र अब्बास सफ़वी

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दश्त में गुलशन में हर जा की है तेरी जुस्तुजू
अब कहाँ ले जा रहा है ऐ फ़रेब-ए-रंग-ओ-बू

आप इतना तो बता दें कब करम होगा हुज़ूर
कब मुरव्वत में बदल जाएगी ये नफ़रत की ख़ू

सादगी-ए-दिल पे अपनी रश्क आता है मुझे
इक वफ़ा ना-आश्ना से है वफ़ा की आरज़ू

इश्क़ की मंज़िल में लाखों कारवाँ गुम हो गए
रहरव-ए-राह-ए-मोहब्बत क्या करेंगे जुस्तुजू

रह गए हैं अब तो ले दे कर दिल-ए-बर्बाद में
हसरत-ए-दीदार का ग़म और तेरी आरज़ू

दे रही है अपने दामन की हवा बाद-ए-सहर
तेरी ज़ुल्फ़-ए-अम्बरीं है इक जहान-ए-रंग-ओ-बू

जब कभी साक़ी ने 'जाफ़र' अपनी नज़रें फेर लीं
मय-कदे में पी लिया है मैं ने अरमाँ का लहू