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दश्त-ए-ग़म से गुज़र रहा हूँ मैं | शाही शायरी
dasht-e-gham se guzar raha hun main

ग़ज़ल

दश्त-ए-ग़म से गुज़र रहा हूँ मैं

कमाल जाफ़री

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दश्त-ए-ग़म से गुज़र रहा हूँ मैं
तीरगी में निखर रहा हूँ मैं

वक़्त ने क़द्र की नहीं वर्ना
वक़्त का हम-सफ़र रहा हूँ मैं

बिखरा बिखरा हूँ एक मुद्दत से
रफ़्ता रफ़्ता सँवर रहा हूँ मैं

ख़ुद-नुमाई की हर बुलंदी से
ज़ीना ज़ीना उतर रहा हूँ मैं

शुक्र तेरा कि ऐ जुनून-ए-सफ़र
ख़ुद से भी बे-ख़बर रहा हूँ मैं

नाम मेरा 'कमाल' है लेकिन
उम्र भर बे-असर रहा हूँ मैं