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दश्त-ए-ग़म में साया-ए-गेसू न ढूँढ | शाही शायरी
dasht-e-gham mein saya-e-gesu na DhunDh

ग़ज़ल

दश्त-ए-ग़म में साया-ए-गेसू न ढूँढ

हबाब तिर्मिज़ी

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दश्त-ए-ग़म में साया-ए-गेसू न ढूँढ
पत्थरों में दर्द की ख़ुश्बू न ढूँढ

ज़िंदगी में अब वो रंग-ओ-बू न ढूँढ
गुल-अदा गुल-पैरहन गुल-रू न ढूँढ

अपने होंटों पर तबस्सुम कर तलाश
वक़्त के रुख़्सार पर आँसू न ढूँढ

मस्तियों में रक़्स-ए-ताऊस अब कहाँ
शोख़ियों में वो रम-ए-आहू न ढूँढ

मौजज़न है दिल में जो तूफ़ाँ वो देख
ख़ुश्क आँखों में मिरी आँसू न ढूँढ

हो सके तो इस रिवायत को न तोड़
मैं तुझे ढूँडूँगा मुझ को तू न ढूँढ

दुश्मनों में भी महासिन कर तलाश
हम-नफ़स तन्क़ीस के पहलू न ढूँढ