डरता हूँ ज़िंदगी के वसीले नहीं मिले
आँखों को अब के ख़्वाब रंगीले नहीं मिले
सूरज की प्यास थी जो समुंदर सुखा गई
हम को रसीले होंट भी गीले नहीं मिले
बिखरा हुआ मिला है हर इक फ़र्द भी वहाँ
आबाद थे मगर वो क़बीले नहीं मिले
इतनी सी बात पर हमें नाराज़ वो मिला
लौटे जो शहर से तो सजीले नहीं मिले
'आरिफ़' हमारा दिल जो बुझा बुझ के रह गया
ख़ामोश दो नयन जो नशीले नहीं मिले
ग़ज़ल
डरता हूँ ज़िंदगी के वसीले नहीं मिले
सय्यद अारिफ़